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राजपुरोहित का परिचय



रा - राज कार्य
ज - जरूरिया आवश्यक  
पु - पुरुषार्थ 
रो - रोष या जोश 
ही - हितेषी (हित करने वाला)
त - तलवार धावक


    "राजपुरोहित" अर्थात वह व्यक्ति  जो राज कार्य में दक्ष लेता हो तथा  जरुरी या आवश्यक या पुरुषार्थ के कार्य को अथवा जोश के साथ कर सके जिसमे सभी का हित हो एवं आवश्यकता पड़ने पर तलवार भी धारण कर लेता है ,राजपुरोहित कहलाता है "पुरोधसा च मुख्य माँ विदि पार्थ बर्हस्पतिम |"श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश देते हुए अर्जुन को राजपुरोहित की महता बताते हुए कहा था की हे अर्जुन पुरोहित में देवताओ के  बर्हस्पति मुझे जान " चुकी  बर्हस्पति देवताओ के गुरु के गुरु थे और वह राजपुरोहित थे | पृथ्वी की रचना होने एव देव -उत्पति से लेकर वर्तमान युग तक राजपुरोहित का स्थान सदा श्रेष्ठ रहा है रजा का समंध राज से होता है किन्तु उससे भी बढ़कर स्थान राजपुरोहित का रहा है अत इस श्रेष्ठ कुल में जन्म लेने वाले को गर्व होना चाहिए की "में राजपुरोहित हु " प्रजापति का सर्वोस गुरु ही राजपुरोहित होता था तथा दुसरे शब्दों में राज्य की सम्पूर्ण जिम्मेदारी राजपुरोहित की होती थी | जब राजा अत्याचारी हो जाता था तब उन्हें पद से मुक्त करने की जिम्मेदारी भी राजपुरोहित की होती थी|