आइये जानते है परशुराम भगवान का जीवन परिचय (जीवनी ) और उनकी कहानी के बारे में |
भगवान परशुराम श्री हरि विष्णु के अंशावतार है और आठ मुख्य चिरंजिवियो में से एक है | आज भी वे जीवित है और इस कलियुग के अंत में जब भगवान विष्णु कल्कि अवतार लेंगे तब भगवान परशुराम ही उनके गुरु बनकर उन्हें शिक्षा प्रदान करेंगे | अक्षय तृतीया जैसे अबूझ सावे पर इनका जन्मोत्सव बनाया जाता है | आइये जानते है परशुराम भगवान का जीवन परिचय (जीवनी ) और उनकी कहानी के बारे में |
परशुराम जी का परिवार :
भगवान परशुराम जी के पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थे | इनके तीन बड़े भाई भी थे और सबसे छोटे परशुराम जी थे | ब्राहमण होने के बाद भी एक श्राप के कारण इनके गुण क्षत्रिय वाले भी थे |
क्षत्रियो के संहारक :
भगवान परशुराम महान और न्यायप्रिय देवता है | उन्हें क्षत्रियों का संहारक भी कहा जाता है पर इसका सही अर्थ हम सभी को समझना चाहिए | उन्होंने उन्ही पापी और दुष्ट क्षत्रियों का वध किया जिनके पाप से धरती पर बोझ बन गया था | उन्होंने २१ बार ऐसे दुष्ट क्षत्रियों से धरती को पाप मुक्त किया था | यहा आप यह भाव बिलकुल भी ना ले की उन्होंने अच्छे और सच्चे क्षत्रियो को भी मारा था | वे तो स्वयं भगवान थे और उनका अवतार भी सिर्फ दुष्ट क्षत्रियों का विनाश करने के लिए हुआ था |
क्यों किया भगवान परशुराम ने क्षत्रियो का वध :
एक बार राजा कार्तवीर्य अर्जुन उनके पिता जमदग्रि मुनि के आश्रम में आये और उन्हें कामधेनु गाय के दर्शन हुए | वे इस कामधेनु गाय के बछड़े को बलपूर्वक ले गये | जब यह बात परशुराम जी को पता चली तो उन्होंने कार्तवीर्य अर्जुन की हजारो भुजाओ को काटकर उनका वध कर दिया | इस बात का बदला लेने के लिए कार्तवीर्य अर्जुन के पुत्रो ने परशुराम जी के पिता जमदग्रि मुनि का वध कर दिया | परशुराम इस घटना से इतने क्रोधित हुए की उन्होंने उन सभी का और उनके साथियों का वध करके दुष्ट क्षत्रियों से इस धरती को २१ बार मुक्त करवा दिया |
कैसे बने परशुराम जी ब्राहमणों के देवता :
परशुराम जी जन्म से स्वयं ब्राहमण है और उन्होंने जब उनका गुस्सा शांत हुआ तब उन्होंने घोर तप किया और सम्पूर्ण पृथ्वी ब्राह्मणों को दान कर दी और स्वयं महेंद्र पर्वत पर निवास करने लगे |
भगवान शिव ने बना दिया राम से परशुराम :
बाल्यकाल में भगवान शिव की महा तपस्या करके उन्हें भगवान भोलेनाथ ने यह महाशक्तिशाली परशु (फरसा) प्रदान किया | इसी कारण इनका नाम राम से परशुराम हो गया |
गणेश को एकदंत किया परशुराम जी ने :
ब्रह्मवैवर्त पुराण में एक प्रसंग आता है जब परशुरामजी शिवजी से मिलने कैलाश पर आते है पर श्री गणेश उन्हें मिलने नही देते | दोनों के बीच भीष्म युद्ध होता है और इस युद्ध में परशुराम जी अपने फरसे से श्री गणेश का एक दांत तोड़ देते है |
परशुराम जी का अपने शिष्य कर्ण को श्राप :
कुंती पुत्र कर्ण अपना सही परिचय छिपाकर भगवान परशुराम से अस्त्र शस्त्र की शिक्षा लेते है | एक दिन जब परशुराम जो को पता चलता है की कर्ण भी क्षत्रिय वंश से है तो वे उन्हें श्राप देते है की जब तुम्हे सबसे ज्यादा अस्त्र शस्त्र की विद्या के जरुरत पड़ेगी तभी तुम यह भूल जाओगे | इसी श्राप के कारण महाभारत में कर्ण की मृत्यु हो जाती है |
पिता के कहने पर अपनी माँ के शीश को भी काट दिया था इन्होने :
एक बार इनकी माता रेणुका जल लेने सरोवर पर गयी जहा राजा चित्ररथ जलविहार कर रहे थे | रेणुका के मन में राजा को नहाता देखकर मन गलत बातो में जाने लगा | वह जब आश्रम में आई तो यह बात उनके पति जमदग्रि ने जान ली | उन्होंने क्रोध में आके परशुराम जी को रेणुका का सिर काटने का आदेश दे दिया जिसे चाह कर भी परशुराम जी मना नही कर सकते थे | उन्होंने फरसे से अपनी माता का सिर काट डाला।अपने पुत्र के आज्ञा पालन के इस कर्म को देखकर पिता बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान मांगने के लिए बोले |
परशुराम ने वरदान में अपनी माँ को पुनः जीवित करने और इस सारी घटना को सभी के दिमाग से मिटाने का वरदान मांग लिया | पिता ने उनके वरदान को पूर्ण किया और रेणुका पुनः जीवित हो गयी |
भगवान परशुराम जी चरणों में कोटि कोटि नमन
साभार:- निर्मल शर्मा (खांडल विप्र जयपुर)